पश्चिम चम्पारण में वर्षा नहीं, खेतों में पड़े दरार, किसानों में हाहाकार, अकाल के आसार

अवधेश कुमार शर्मा
बेतिया: पश्चिम चम्पारण जिला में वर्षा नहीं होने से किसान व्यथित हैं। प्रबुद्धजन बताते हैं कि समय से वर्षा नहीं होने से धान की रोपनी बाधित है, जिन खेतों में रोपनी हो गई है, वह सुखाड़ से मचा हाहाकार, बड़े नहरों में पानी है तो छोटे नहर और चैनल की स्थिति सही नहीं है। जिसके कारण किसान के खेतों में नहर का पानी नहीं पहुंच रहा है। जिसके कारण धान की रोपनी भी ठप है। किसानों के खेत में धान के बिछड़े सूखने की स्थिति में है।
बिहार में किसान सुखाड़ की मार झेलने को विवश हैं। प्राकृतिक वर्षा के लिए किसानों में हाहाकार मची हुई है। जुलाई 2022 का पहला पखवाड़ा बीत गया अलबत्ता खेत वर्षा की बूंद के लिए तरस गई है। बरसात नहीं होने से धान की रोपनी को लेकर आश्रित रहने वाले किसान परेशान हाल है। मौसम की बेरुखी से खेतों में दरारें दिखने लगी हैं, कई खेतों में धूल तक उड़ने लगी है। यूपी-बिहार सीमा को विभाजित करने वाली गंडक नदी का जलस्तर भी पूर्व की अपेक्षा घटने लगी है। इसके कारण क्षेत्र में किसानों के खेतों की सिंचाई को लेकर भाग्य भरोसे है। जिससे चम्पारण की धान की खेती बर्बादी की कगार पर पहुंच गई है। जुलाई 2022 में बरसात नहीं होने से धान की रोपनी को लेकर मानसून पर आश्रित रहने वाले किसान परेशान हैं। वर्षा की बेरुखी से खेतों में दरार फट गयी हैं, धान की रोपा सूखने लगे हैं। पुराने किसान बताते हैं कि आसाढ़ महीना में वर्षा नहीं होने से बर्बाद धान की फसल को सावन के महीने में रिमझिम फुहार से क्या लाभ होगा। जिला के खेतों में उड़ रही धूल से सूखाड़ की संभावना प्रबल है। पश्चिम चम्पारण जिला में नहर की कमी नहीं है, अलबत्ता नहर से किसान के खेत तक पानी ले जाने वाले चैनल घ्वस्त है।
प्रबुद्ध किसान ए के मिश्र बताते हैं कि सरकार और प्रशासन को किसानों के नाम पर योजना बनाने से फुर्सत नहीं मिल रही, लेकिन उन योजनाओं का लाभ किसानों को नहीं मिल रहा है। सरकारी अधिकांश बोरिंग खराब पड़े हैं। जिला प्रशासन उन्हें दुरुस्त करने का निर्देश दे चुका है, अलबत्ता ढाक के तीन पात वाली कहावत जिला में चरितार्थ है। किसान नेता विजय राव बताते हैं कि सरकार किसानों के नाम पर नीति बना रही है, लेकिन किसानों को उसका लाभ नहीं मिल रहा है। विगत दिनों जिला पदाधिकारी ने जिला के सभी हैण्ड पम्प की मरम्मत का निदेश दिया, बावजूद इसके उन खराब हैण्ड पम्प को अभी उसी स्थिति में देखा जा रहा है। वर्षा के आभाव में जल स्तर गिरने से हैंड पंप भी पानी देना बंद कर चुके है। जिन किसानों के पास निजी पंप है, वैसे किसान ही धान की कुछ रोपनी कर सके है। सबसे अधिक परेशानी प्रकृति के भरोसे तथा नहरों पर आश्रित रहने वाले किसानों को है। वर्षा के अभाव में लगभग एक सौ फीट नीचे बोरिंग वाले हैंड पंपों का पानी का स्तर भी उतरने लगा है। ऐसे में पेयजल का आभाव भी एक समस्या है। मानसूनी वर्षा के आभाव में किसानों की स्थिति सांप छुछुंदर की हो गई है। वर्षा के नहीं होने से धान की फसल नहीं होगी, ऐसी परिस्थिति में आने वाले समय में खाद्य संकट उत्पन्न हो सकता है।

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