गणादेश खासः झारखंड कैडर महिला आइएएस अफसरों को एक्सपोजर नहीं, राज्य में 15 फीसदी से कम हैं महिला आइएएस

झारखंड कैडक की महिला अफसर ने बयां किया अपना दर्द
राज्य गठन के बाद से सिर्फ दो महिला आइएएस ही बन सकी हैं चीफ सेक्रेट्री
दो महिला आइएएस अफसरों ने कर लिया दिल्ली का रूख
स्मिता चुग केंद्रीय प्रतिनियुक्ती में जाने के बाद वापस नहीं आई
ज्योत्सना वर्मा बर्खास्त होना मुनासिब समझा, पर नहीं आई झारखंड
रांचीः झारखंड में महिला आइएएस अफसरों को एक्सपोजर नहीं मिल पा रहा है। वहीं दूसरी ओर राज्य में 15 फीसदी से कम महिला आइएएस अफसर हैं। राज्य गठन के बाद से अब तक दो महिला आइएएस अफसर ही चीफ सेक्रेट्री बन पाई। इसमें लक्ष्मी सिंह(दिवंगत) और राजबाला वर्मा ही शामिल हैं। इसके बाद से किसी भी महिला अफसर को क्रीम विभाग नहीं मिल पाया है। सिर्फ निधि खरे और वंदना दादेल को कार्मिक की जिम्मेवारी मिली। वर्तमान में झारखंड कैडर की महिला अफसरों में निधि खरे, अलका तिवारी दोनों केंद्रीय प्रतिनियुक्ति में हैं। वहीं झारखंड में कार्यरत महिला अफसरों में वंदना दादेल,अराधना पटनायक, हिमानी पांडे, पूजा सिंघल, राजेश्वरी बी, विप्रा भाल, नेहा अरोड़ा, किरण कुमार पासी, नैंसी सहाय, माधवी मिश्रा, जाधव विजया नारायण राव, अंजली यादव, मेघा भारद्वाज, गरिमा सिंह, कीर्ति श्री, प्रेरणा दीक्षित, समीरा एस हैं। इसमें से अऱाधना पटनायक, वंदना दादेल और हिमानी पांडेय ही सचिव रैंक की अफसर हैं। शेष डीसी निदेशक रैंक की अफसर हैं। वहीं सचिव रैंक की अफसर पूजा सिंघल निलंबित हैं। इस मामले पर राज्य की एक महिला आइएएस अफसर ने अपना दर्द भी बयां किया है।
सबसे अधिक कर्नाटक और तेलंगाना में महिला आइएएस
राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र के आंकड़ों के अनुसार 2022 तक सबसे अधिक आईएएस अफसर कर्नाटक और तेलंगाना में हैं। इन दोनों राज्यों में 30 फीसदी महिला आइएएस अफसर हैं। वहीं जम्मू-कश्मीर, सिक्किम, बिहार, त्रिपुरा और झारखंड कैडर में 15 फीसदी से भी कम महिलाएं हैं। वहीं देश भर में वर्तमान में 21 प्रतिशत सेवारत आईएएस अधिकारी महिलाएं हैं। जून 2022 तक, भारत सरकार के 92 सचिवों में से महज 14 फीसदी यानी 13 ही महिलाएं हैं। देश के कुल 36 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को मिलाकर केवल दो महिलाएं ही मुख्य सचिव थीं। अब तक भारत में एक भी महिला कैबिनेट सचिव के तौर पर काबिज नहीं हो पाई है।
महिला आइएएस ने बयां किया अपना दर्द
इस मामले में झारखंड की एक महिला आइएएस अफसर ने अपना दर्द भी बयां किया है। नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि सरकार का आना-जाना तो लगा रहता है, लेकिन हर बार सिस्टम में बदलाव से परफॉरमेंस पर असर पड़ता है. कितना भी बेहतर काम कर लें फिर भी एक्सपोजर नहीं मिल पाता। हर बेहतर काम में कोई न कोई अडंगा लग ही जाता है। सुझावों पर अमल नहीं होता। जूनियर अफसरों की बातों को गंभीरता से सुना भी नहीं जाता है। जल्दी-जल्दी ट्रांसफर-पोस्टंग से भी नये कामकाज को समझने में एक से डेढ़ माह का समय लगता है. संबंधित विभाग की नियमावली की जानकारी लेनी पड़ती है. अगर कोई महत्वपूर्ण केस चल रहा है तो उसे समझना पड़ता है. मैनपावर और योग्य कर्मियों को समझने में लगभग एक माह का समय लगता है. पुराने अफसर व सचिव के द्वारा लिए गये निर्णय और फाइलें देखने एवं समझने में समय लगता है. महत्वपूर्ण निर्णय लेने में कठिनाई होती है.
आइएएस लॉबी भी करती है टॉर्चर
इस महिला आईएएस अफसर का यह भी कहना है कि झारखंड कैडर में आईएएस लॉबी भी एक बड़ा फैक्टर है. अगर कोई आईएएस बेहतर काम कर रहा है तो सरकार से मिलकर एक नया रूप देने की कोशिश की जाती है. टॉर्चर किया जाता है। इस कारण परफॉरमेंस करने वाले अफसर फाइल करने से डरते हैं. अब तो नई परिपाटी यह भी चल गया है कि छोटी-छोटी बातों में आईएएस अफसरों के बीच रिएक्शन ज्यादा होता है. इसकी वजह यह है कि परफॉरमेंस करने वाले अफसरों को छोटे-छोटे प्रोजेक्ट में डाल दिया जाता है, जिसके कारण एक्सपोजर नहीं मिल पाता.

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