मांडर उपचुनाव में बीजेपी और कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर, अब तक तीन उपचुनाव में बीजेपी को मिल चुकी है हार
त्रिकोणीय संघर्ष में फंसा है चुनाव, देवकुमार धान भी बिगाड़ सकते हैं खेल
रांचीः मांडर विधानसभा का चुनाव कई मायनों में अहम होगा। इसमें बीजेपी के साथ कांग्रेस की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। बीजेपी की प्रतिष्ठा इसलिए भी दांव पर है कि इससे पहले हुए तीन उपचुनाव में बीजेपी को करारी हार मिल चुकी है। मांडर उपचुनाव त्रिकोणीय संघर्ष में फंसता नजर आ रहा है। इसकी वजह यह है कि देवकुमार धान के चुनावी अखाड़े में कूदना। इस बार देव कुमार धान एआईएमआईएम के बैनर तले चुनाव लड़ रहे हैं। 19 जून को एआईएमआईएम सुप्रीमो ओवैसी भी मांडर पहुंचेगे। देवकुमार धान मुस्लिम वोट में सेंधमारी कर कांग्रेस को नुकसान भी पहुंचा सकते हैं। वहीं सरना धर्म कोड और सिलागाई के मुद्दे को भुनाकर सरना वोट को अपनी ओर खींचने को कोशिश करेंगे। इस वजह से भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए देव कुमार धान चुनौती बन गए हैं । देवकुमार धान जीते या हारे लेकिन लेकिन बीजेपी और कांग्रेस का खेल बिगाड़ सकते हैं। इधर, भाजपा ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। बीजेपी उम्मीदवार गंगोत्री कुजूर के पक्ष में बाबूलाल मरांडी ने पूरा जोर लगा दिया है। खास तो यह है इस चुनाव में जनमुद्दे गायब हैं। बस आरोप-प्रत्यारोप का ही दौर चल रहा है। बीजेपी मतदाताओं को यह समझाने का प्रयास कर रही है कि जिस उम्मीद के साथ राज्य की जनता ने हेमंत सोरेन को सत्ता सौंपी थी, उसमें वह विफल रहे। वहीं कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की और प्रत्याशी शिल्पी नेहा तिर्की अपने चुनावी सभाओं और प्रचार में अलग-अगल मोर्चे से भाजपा के खिलाफ किलेबंदी करने में जुटे हैं. शिल्पा मतदाताओं को यह समझाने में लगी है कि उनके पिता को किस तरह उनके विरोधियों में फंसाया. उनके पिता शुरू से ही आदिवासी, मूलवासी, दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक एवं गरीब-गुरबा की आवाज को उठाते रहे. मगर अब उनके विरोधी उनके आवाज को दबाना चाहते है. वहीं बंधु तिर्की अपने चुनावी अभियान में एक ओर जहां उन्हें फंसाए जाने के मुद्दे को प्रमुखता से उठा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर वर्तमान हेमंत सरकार द्वारा 28 महीने में किए गए जनउपयोगी कार्यों को जनता के समक्ष रख रहे हैं. बंधु तिर्की यह भी बता रहे हैं कि किस तरह भाजपा एक चुनी हुई सरकार को डिस्ट्रब करने में जुटी है.