17 मौजा के पारम्परिक मुंडा – पाहन संग हजारों ग्रामीण शामिल हुए

खूंटी: टूटी पड़हा, जोरदा के तत्वावधान में बीते शुक्रवार को डाड़ीगुटू पंचायत अन्तर्गत जोरदा ग्राम के जाएर पीड़ी में ” पड़हा जतरा सह सांगी बा ” का कार्यक्रम पड़हा राजा फूलचन्द टूटी के अगुवाई में तथा जोरदा, सलगाडीह, डाड़ीगुटू, तारोब एवं ओमटो ग्राम के पाहनों द्वारा पारम्परिक रीत दस्तुर अनुसार अर्जी गोवारी कर प्रारम्भ हुआ। देर रात तक चले कार्यक्रम में मूख्य रूप से 17 मौजा के पारम्परिक मुंडा – पाहन संग हजारों ग्रामीण शामिल हुए।
कार्यक्रम में आमंत्रित अतिथियों का पारम्परिक नृत्य और गीत द्वारा स्वागत के उपरांत “आदिवासी संस्कृति तथा पारम्परिक व्यवस्था” पर परिचर्चा का शुरुआत पूर्व मुखिया टाकोरा मुंडा द्वारा विषय प्रवेश से प्रारम्भ हुआ।
मुख्य अतिथि झारखण्ड उलगुलान संघ के संयोजक अलेस्टेयर बोदरा ने अपने सम्बोधन में कहा कि मुंडाओं का मूल सामाजिक व्यवस्था पड़हा पट्टी ही है, जब पूर्वजों ने गोत्र के आधार पर सामाजिक व्यवस्था कायम किया और गांव बसाना प्रारम्भ हुआ। गाँव की व्यवस्था का संचालन के लिए ग्राम सभा का गठन किया गया। यह जो पारम्परिक व्यवस्था है, उसे ही पेसा कानून द्वारा मान्यता प्रदान किया गया है। परन्तु, उस अनुरूप अधिकार न ग्राम सभा को दिया गया है न ही पारम्परिक व्यवस्था को जगह देने का प्रयास किया गया। यह बहुत बड़ा अन्याय है, इस अन्याय को समझने की जरूरत है।
झारखंड ग्राम सभा मंच के संयोजक राधाकृष्ण सिंह मुंडा ने कहा कि झारखंड सरकार पंचायत राज अधिनियम – 2001 को थोपकर पेसा कानून के अधिकार से ग्राम सभा को वंचित करने का काम कर रही है। समाजसेवी सिंगराय मुंडा ने जोर देते हुए कहा कि सी.एन.टी एक्ट और झारखंड अलग राज्य लड़ाई का ही परिणाम है, पेसा कानून के हूबहू अनुपालन के लिए भी लड़ाई लड़ना होगा। चैतन्य मुंडा ने कहा कि बिना संघर्ष के कभी आदिवासियों को अधिकार नहीं मिला है, पेसा कानून को हूबहू लागू करवाने के लिए भी संघर्ष का रास्ता ही अपनाना होगा।
झारखंड उलगुलान संघ के क्षेत्रीय प्रभारी बेनेडिक्ट नवरंगी ने कहा कि अधिकार सम्पन्न ग्राम सभा से ही आदिवासियों का विकास सम्भव है। इसलिए पेसा कानून को लागू करवाना बहुत जरूरी है।
इस पड़हा जतरा सह सांगी बा कार्यक्रम में पारम्परिक खेलकूद सहित फूटबाल टूर्नामेंट का भी आयोजन किया गया तथा रात में धूमधाम से सांस्कृतिक कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम संचालक नन्दराम मुंडा सहित मुख्य रूप से केदार मुंडा, लेदा मुंडा, जोटो मुंडा, एतवा मुंडा, राम मुंडा, पौलुस टूटी, दारू मुंडा, भईयाराम मुंडा, मुईसू पाहन, डिम्बा पाहन, सुन्दर पाहन, टाकुरा पाहन, कांडे मुंडा, लेबेड़ा पाहन, सोम्बरा मुंडा, एतवा पाहन, संतोष टूटी, नमन टूटी, बुधराम मुंडा, कीनू मुंडा आदि का विशेष योगदान रहा।

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