पर्वत तो राधारानी ने उठाया था, कृष्ण का तो बस नाम*!
गोवर्धन लीला के बाद समस्त ब्रजमंडल में श्री कृष्ण के नाम की चर्चा होने लगी। सभी ब्रजवासी कृष्ण की जय-जयकार कर रहे थे और उनकी महिमा का गान कर रहे थे। ब्रज के गोप-गोपियों के मध्य कृष्ण की ही चर्चा थी।
एक स्थान पर कुछ गोप और गोपियाँ एकत्रित थी और यही चर्चा चल रही थी, तभी एक गोप मधुमंगल बोला इसमें कृष्ण की क्या विशेषता है, यह कार्य तो हम लोग भी कर सकते है। वहां राधा रानी की सखी ललीता भी उपस्थित थी वह तुरंत बोल उठी-हां हां देखी है तुम्हारी योग्यता, जब कृष्ण ने पर्वत उठाया था तो तुम सभी ने अपनी-अपनी लाठियां पर्वत के नीचे लगा थी और कान्हा से हाथ हटा लेने के लिए कहा था। मगर हाथ उठाना तो दूर कान्हा ने थोड़ी से अंगुली टेढ़ी की और तुम सब की लाठियां चटाचट टूट गई थी। तब तुम सब मिलकर यही बोले थे कि कान्हा तुम्ही संभालो…तब कान्हा ने ही पर्वत संभाला था।
यह सुनकर मधुमंगल बोला-हाँ हाँ मान लिया की कान्हा ने ही संभाला, किन्तु हम ने प्रयास तो किया तुमने क्या किया? यह सुनकर ललीता बोली-हां हां, देखी है तुम्हारे कान्हा की भी शक्ति। माना हमने कुछ नहीं किया किन्तु हमारी सखी राधारानी ने तो किया। मधुमंगल बोला-अच्छा जी, राधा रानी ने क्या करा तनिक यह तो बताओ। ललीता ने उत्तर दिया-पर्वत तो हमारी राधारानी ने ही उठाया था, कृष्ण का तो बस नाम हो गया।
यह सुनकर सभी गोप सखा हंसने लगे और बोले-लो जी, अब यह राधा रानी कहाँ से आ गई? पर्वत उठाया कान्हा ने, हाथ दुखे कान्हा के। पूरे सात दिन एक स्थान पर खड़े रहे कान्हा। ना भूख की चिंता ना प्यास की, ना थकान का कोई भाव, ना कोई दर्द, सब कुछ किया कान्हा ने-और बीच में आ गई राधारानी। तब ललीता बोली-लगता है जिस समय कान्हा ने जब पर्वत उठाया था उस समय तुम लोग कहीं और थे, अन्यथा तुमको भी पता चल जाता कि पर्वत तो हमारी राधारानी ने ही उठाया था।
इस पर सभी गोप सखा बोले-ऐसी प्रलयकारी स्थिति में कहीं और जा कर हमको क्या मरना था। एक कृष्ण ही तो हम सबका आश्रय थे, जिन्होंने सबके प्राणों की रक्षा की। ललीता बोली-तब भी तुमको यह नहीं पता चला कि पर्वत हमारी राधारानी ने उठाया था। सभी गोपसखा बोले-हमने तो ऐसा कुछ भी नहीं देखा। तब ललीता बोली-अच्छा यह बताओ कि कान्हा ने पर्वत किस हाथ से उठाया था? मधुमंगल बोला-कान्हा ने तो पर्वत अपने बायें हाथ से ही उठा दिया था, दायें हाथ की तो आवश्यकता ही नहीं पड़ी।तब ललीता बोली-तभी तो में कहती हूँ कि पर्वत हमारी राधारानी ने उठाया, कृष्ण ने नहीं। यदि कृष्ण अपनी शक्ति से पर्वत उठाते तो वह दायें हाथ से उठाते। किन्तु उन्होंने पर्वत बायें हाथ से उठाया, क्योकि किसी भी पुरुष का दायां भाग उसका स्वयं का तथा बायाँ भाग स्त्री का प्रतीक होता है। जब कान्हा ने पर्वत उठाया तब उन्होंने श्री राधा- रानी का स्मरण किया और तब पर्वत उठाया। इसी कारण उन्होंने पर्वत बाएं हाथ से उठाया। कृष्ण के स्मरण करने पर राधा रानी ने उनकी शक्ति बन कर पर्वत को धारण किया। अब किसी भी बाल गोपाल के पास ललीता के इस तर्क का कोई उत्तर नहीं था। सभी निरुत्तर हो गए और ललीता राधे-राधे गुनगुनाती वहां से चली गई।
यह सत्य है कि राधे रानी ही भगवान श्री कृष्ण की आद्यशक्ति है। जब भी भगवान कृष्ण ने कोई विशेष कार्य किया पहले अपनी शक्ति का स्मरण किया। श्री राधा रानी कृष्ण की शक्ति के रूप में सदा कृष्ण के साथ रही। इसलिए कहा जाता है कि श्री कृष्ण को प्राप्त करना है तो श्री राधा रानी को प्रसन्न करना चाहिए। जहाँ राधा रानी होंगी वहां श्री कृष्ण स्वयं ही चले आते हैं। यही कारण है कि भक्त लोग कृष्ण से पहले राधा का नाम लेते है।