केदला 2 नंबर में शहादत दिवस पर याद किये गये शहीद-ए-आजम भगत सिंह

सवांददाता

वेस्ट बोकारो (घाटो)। शहीद – ए – आजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की 91वां शहादत दिवस केदला 2 नंबर मे बुधवार को मा.स.स. के द्वारा मनाया गया। मौके पर मा.स.स.जिला सचिव रोशन मुंडा,बसंत कुमार,जरनाथ मुंडा,मो. नौशाद अहमद,शंकर रजवार,अरुण कुमार हेंब्रोम, गुडू मुंडा,शहदेव उरांव, फरहरी महतो,अशोक महतो,वकील महतो,दिनेश उरांव,सोहन हरिदास,पन्नी महतो,शंकुतला देवी,संजिला देवी,सुनीता देवी, निराशो देवी,रीता देवी ने इनकी चित्र पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया। इन्होंने कहा कि शहीदों की यह याद करने की प्रेरणा व परंपरा से हम आगे बढ़ते हैं। आगे कहा कि भारत की आजादी के लिए भगत सिंह ने 23 साल की उम्र में ही अपने प्राणों की आहुति दे दी थी।

–शहीद दिवस क्यों मनाते हैं?–
23 मार्च को तीन स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव को अंग्रेजों ने फांसी पर चढ़ा दिया था। बेहद कम उम्र में इन वीरों ने लोगों के कल्याण के लिए लड़ाई लड़ी और इसी उद्देश्य के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। कई युवा भारतीयों के लिए भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव प्रेरणा के स्रोत बने हैं। ब्रिटिश शासन के दौरान भी, उनके बलिदान ने कई लोगों को आगे आने और अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। यही कारण है कि इन तीनों क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि देने के लिए भारत 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाता है।

–बलिदान के पीछे की कहानी–
भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर, 1970 में पंजाब के बंगा गांव में हुआ था। वे स्वतंत्रता सेनानी के परिवार में पले बढ़े और छोटी आयु में उन्हें फांसी दे दी गई। वहीं राजगुरु का जन्म 1908 में पुणे में हुआ था। वे हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी में भी शामिल हुए थे एवं सुखदेव का जन्म 15 मई 1907 में हुआ था उन्होंने पंजाब और उत्तर भारत में क्रांतिकारी सभाएं की और लोगों के दिलों में जोश पैदा किया। लाला लाजपत राय की हत्या के बाद कारण भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, आजाद और कुछ अन्य लोगों ने आजादी के लिए संग्राम का मोर्चा संभाल लिया था। अंग्रेजी शासन के हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाते हुए उन्होंने पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्ट्रीब्यूटर बिल के विरोध में 8 अप्रैल, 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम फेंके थे। जब भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा लगा रहे थे, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर हत्या का आरोप लगाया गया। हत्या के आरोप में 1931 में उन्हें 23 मार्च को लाहौर जेल में तीनों को फांसी दे दी गई।

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