रंग-पर्व होली पर कविता
गाँव-शहर में, गली-गली में,
खेल रहे सब होली।
आओ रंग -गुलाल लगाकर,
कर लें हँसी-ठिठोली।।टेक।।
भाग रहे हैं रंग देखकर, अपनी जान बचाएँ।
पकड़ो नहीं खूब खेलेंगे, पिचकारी हम लाएँ।।
फँसे आज हैं श्याम सँवरिया,दौड़ पड़ी सब टोली।
आओ रंग-गुलाल लगाकर,
कर लें हँसी-ठिठोली।।१।।
बात-बात में बात बढ़ी है, सखियाँ दौड़ी आयीं।
करूँ नहीं विश्वास साँवरे,देख हृदय मुसकायीं।।
सुनतीं नहीं बहाना कोई, हमें न समझो भोली।
आओ रंग-गुलाल लगाकर,
कर लें हँसी-ठिठोली।।२।।
ग्वाल-बाल सब एक हो गये,हिम्मत मन में बाढ़ी।
लगे छोड़ने रंग सभी पर, प्रीति हुई अति गाढ़ी।।
पड़ी फुहार रंग की सुन्दर, भीग गयी है चोली।
आओ रंग -गुलाल लगाकर,
कर लें हँसी-ठिठोली।।३।।
खेलो रंग आज मनमोहन, सुनिए बात हमारी।
छोड़ नहीं सकती हूँ तुमको, फटे भले ही सारी।।
हुई खूब बरजोरी फिर भी,विवश हुए हमजोली।
आओ रंग-गुलाल लगाकर,
कर लें हँसी-ठिठोली।।४।।
नीले-हरे रंग की गगरी, डाल रहीं हैं ऊपर।
खेल रहे हैं सब दधि-काँदौ,सभी प्यार में छूकर।।
रूप-रंग कुछ समझ न आए,चले भले अब गोली।
आओ रंग-गुलाल लगाकर,
कर लें हँसी-ठिठोली।।५।।
शीश मुकुट शोभित पग नूपुर,करूँ बात नित प्यारी।
खेलेंगे मिलकर हम होली, खाऊँ कसम तुम्हारी।
फगुआ गीत सुनाना होगा, नाच-नाच हर खोली।
आओ रंग-गुलाल लगाकर,
कर लें हँसी-ठिठोली।।६।।
सखियाँ भी नाचेंगी जी भर, पीछे कभी न रहना।
होली है रँग खूब पड़ेगा, बात ध्यान में रखना।।
साथ चलूँगी नन्ददुलारे!, लेकर आना डोली।
आओ रंग-गुलाल लगाकर,
कर लें हँसी-ठिठोली।।७।।
खेलो नटवर! संग हमारे, हम हैं छैल-छबीली।
होगी खुशी सोच लो अद्भुत, होली बड़ी रसीली।।
रास रचाना होगा ब्रज में, भाल सजेगी रोली।
आओ रंग-गुलाल लगाकर,
कर लें हँसी-ठिठोली।।८।।