हेमंत भूतपूर्व हुए तो बीजेपी को भी बड़ा सियासी नुकसान..

बिहार में लालू प्रसाद के मामले में भी हुई थी यही गलती
राघवेंद्र
रांची: दुमका के सरकारी बस स्टैंड चौक पर चाय पीते हुए फागू मरांडी कुछ ज्यादा ही आक्रोश में है। यह कह रहा है कि सबे नेता चोर है। फिर हेमंत पर निशाना क्यों। ई सब भाजपा कर खेल हउ। इस तरह का प्रतिक्रियावाद केवल दुमका ही नहीं, आदिवासी बहुल हर क्षेत्र में है।
अब 5 ही दिन बचे हैं। जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को चुनाव आयोग के नोटिस का जवाब देना है। प्रदेश के अधिकांश नेताओं को लगता है कि चुनाव आयोग से मुख्यमंत्री को कोई रिलीफ नहीं मिलने वाला। ऐसे में कई सियासी सवाल उठ खड़े होते हैं। प्रश्न यह है कि अगर हेमंत सोरेन की विधायकी गई तो क्या-क्या हो सकता है! राज्य सरकार का क्या होगा और जिस भाजपा के आरोपों पर यह कार्रवाई संभावित है, उसे क्या हासिल होनेवाला है!
अगर प्रचलित सियासी धारणा के हिसाब से यह मान भी लें कि हेमंत सोरेन की विधायकी जा रही है,तो उसके बाद उनके पास सुप्रीम कोर्ट तक जाने का विकल्प है। अगर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे दिया तो हेमंत बने रहेंगे। अगर कोर्ट ने स्टे नहीं दिया तो भी शिबू सोरेन मुख्यमंत्री हो ही सकते हैं।कई अन्य विकल्प भी है, लेकिन संख्या बल के हिसाब से झामुमो,कांग्रेस,राजद की सरकार तो चलती ही रहेगी तो फिर आरोप लगाने वाली भाजपा को क्या मिलना है!
भाजपा के कई पदाधिकारी ऑफ द रिकॉर्ड कहते हैं कि जिस तरह हेमंत सोरेन और सोरेन परिवार पर गंभीर अनियमितता के आरोप लगे हैं। ऐसे में अगर कार्यवाही होती है तो ये लोग जनता की नजरों में गिरेंगे,बदनाम होंगे। इनके विधायक हतोत्साहित होंगे और फिर अगर पार्टी में भगदड़ मची तो राष्ट्रपति शासन की सूरत भी बन सकती है।
..पर क्या यह इतना आसान है! जब सदन के फ्लोर पर सरकार बहुमत में है।उसके सहयोगी उसके साथ हैं तो फिर केवल चेहरा बदलकर सरकार तो चलती ही रहेगी और जहां तक डिफेम होने की बात है तो झामुमो का जो आधार समर्थक वर्ग है।उसे तो इन बातों से कोई फर्क ही नहीं पड़ता। वह झामुमो के साथ कल भी थे, आज भी हैं। बल्कि उन्हें तो लगता है कि विपक्ष सोरेन परिवार के साथ खेल कर रहा है। ऐसे में आदिवासी और अल्पसंख्यक वोटरों की सहानुभूति और बढ़ सकती है। जेएमएम जैसे कैडर बेस्ड पार्टी में वैसे भी भगदड़ कब मचती है!
फिर तो बीजेपी को नुकसान ही है। झामुमो के नेता प्रदेश के हर इलाके में जाकर अपने वोटरों को यह समझाने में सफल हो जाएंगे कि बीजेपी और उनके सहयोगी आदिवासी विरोधी हैं। अगर यह परसेप्शन बन गया तो फिर लंबे समय तक बीजेपी की छवि प्रदेश में आदिवासी विरोधी की ही हो जाएगी। वैसे भी आदिवासी वोट बैंक का बहुत मामूली हिस्सा ही भाजपा के साथ जा पाता है, जबकि भाजपा में कई आदिवासी नेता हैं। यह खतरा ज्यादा इसलिए दिख रहा,क्योंकि लगातार कॉमन करप्शन या रुके विकास की बजाय सोरेन परिवार पर व्यक्तिगत हमला कर बीजेपी के बयान बहादुर यह गलती दोहरा रहे हैं।

आपको याद होगा चारा घोटाला के बाद भी बिहार के तत्कालीन भाजपा नेताओं ने लालू परिवार पर व्यक्तिगत हमले बेहद तेज कर दिए थे। लालू जेल गए। सरकार का चेहरा बदला, पर लालू के आधार वोटर घटने की वजह बढ़े ही और आज तक बीजेपी को बिहार के पिछड़ों का बड़ा हिस्सा अपना सियासी दुश्मन ही समझता है। इसलिए बीजेपी को हमेशा नीतीश कुमार जैसे बड़े पिछड़े चेहरे की जरूरत रही। तो क्या भाजपा झारखंड में भी वही गलती दोहरा रही है! क्या भाजपा नेताओं को व्यक्तिगत हमले करने की वजह अपने बयान पर संयम नहीं रखना चाहिए! प्रदेश में घोटाले दर घोटाले, अनियमितता की कहानी सामने लाने की बजाय अति उत्साह में केवल एक परिवार को टारगेट कर पार्टी सेल्फ गोल करने की तरफ ही बढ़ रही है। ऐसा प्रदेश के कई जानकारों को लगने लगा है। देहातों से जिस तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं, जिस तरह झामुमो के नेता खामोशी से गांव- टोला में बैठ कर कर लोगों को यह समझा रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि बीजेपी के बड़े चेहरे सत्ता के लिए अनावश्यक हड़बड़ी में हैं।

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