08अप्रैल सोमवार का राशिफल एवम पंचांग
मेष राशि: मेष राशि वालों यह सूर्यग्रहण आपके द्वादश भाव में लगेगा । जन्मपत्रिका में बारहवें स्थान का संबंध शैय्या सुख से है, आपके खर्चों से है । लिहाजा आपके शैय्या सुख और आपके खर्चों पर यह ग्रहण लगेगा। आपको शैय्या सुख पाने में मुश्किलें होंगी और आपके खर्चों में बढ़त होगी।
🪶 उपाय: इस ग्रहण की अशुभता से बचने के लिये-अपने घर की खिड़की, दरवाज़े खुले रखने चाहिए और घर में उचित मात्रा में रोशनी रखनी चाहिए।
वृषभ राशि:* सूर्य ग्रहण आपके 11वें स्थान पर लगेगा। जन्मपत्रिका में ग्यारहवें स्थान का संबंध आपकी आमदनी और कामना पूर्ति से है। लिहाजा इस ग्रहण का असर आपकी आमदनी और आपकी इच्छाओं पर होगा। आपको अपनी किसी इच्छा की पूर्ति करने में परेशानी आ सकती है ।
🪶 उपाय: सूर्यग्रहण के अशुभ प्रभावों से बचने के लिये- रात को सोते समय अपने सिरहाने पर 5 मूली या 5 बादाम रखकर सोएं और अगले दिन उन्हें किसी मन्दिर या धर्मस्थल पर दान दे आएं।
मिथुन राशि:* सूर्यग्रहण आपके दसवें भाव में लगेगा । जन्मपत्रिका में दसवें स्थान का संबंध आपके करियर, पिता तथा राज्य से है । इस ग्रहण का प्रभाव आपके खुद के और आपके पिता के करियर के ऊपर रहेगा । आपको अपने करियर के डिसीजन लेने में कुछ दिक्कतें आ सकती हैं।
🪶 उपाय: इस ग्रहण के प्रभाव से बचने के लिये- सफेद या शरबती रंग की टोपी या पगड़ी सिर पर पहनें!
कर्क राशि:* राशिचक्र की चौथी राशि कर्र वालों के नवम भाव में यह सूर्यग्रहण लगेगा । जन्मपत्रिका में नवे स्थान भाग्य से संबंध रखता है । लिहाजा आपके भाग्य पर, आपकी किस्मत पर यह ग्रहण लगेगा। इस दौरान आपकी किस्मत आपका पूरी तरह से साथ नहीं दे पायेगी।
🪶 उपाय: ग्रहण के प्रभाव से बचाने के लिये- आपको मन्दिर में गुड़ का दान करना चाहिए।
सिंह राशि:* सिंह राशि वालों यह सूर्यग्रहण आपके आठवें स्थान पर लगेगा । जन्मपत्रिका में आठवें स्थान का संबंध आपकी आयु से है । लिहाजा सूर्य का यह ग्रहण आपकी आयु पर लगेगा । आपके स्वास्थ्य में कुछ उतार-चढ़ाव हो सकते हैं ।
🪶 उपाय: ग्रहण के अशुभ प्रभावों से बचने के लिये- गायत्री मंत्र का 108 बार जाप करें।
कन्या राशि:* कन्या राशि के सातवें भाव में सूर्यग्रहण लगेगा । जन्मपत्रिका में सातवें स्थान का संबंध जीवनसाथी से होता है । लिहाजा जीवनसाथी से आपके संबंधों पर सूर्य का यह ग्रहण लगेगा । अतः अपने जीवनसाथी का ख्याल रखें।
🪶 उपाय: सूर्य के इस ग्रहण के अशुभ प्रभावों से बचने के लिये- भोजन करने से पहले रोटी के एक टुकड़े की अग्नि में आहुति देनी चाहिए।
तुला राशि:* सूर्यग्रहण आपके छठे स्थान पर लगेगा । जन्मपत्रिका में छठवे स्थान का संबंध आपके मित्र, शत्रु और स्वास्थ्य से है । इस ग्रहण के प्रभाव से शत्रु आप पर हावी होने की कोशिश कर सकते हैं, संभलकर रहें और दोस्तों का साथ बनाये रखें।
🪶 उपाय: इस ग्रहण के अशुभ फलों से बचने के लिये- कुत्ते को रोटी खिलानी चाहिए।
वृश्चिक राशि:* आपके पांचवे स्थान पर सूर्य ग्रहण लगेगा । जन्मपत्रिका में पांचवे स्थान का संबंध विद्या, गुरु, संतान एवं विवेक से है और साथ ही रोमांस आदि विषयों से है । अतः आपकी इन सब स्थितियों पर सूर्य ग्रहण का प्रभाव पड़ेगा |
🪶 उपाय: ग्रहण के अशुभ प्रभावों से बचने के लिये और शुभ फल सुनिश्चित करने के लिये- पक्षियों को दाना डालना चाहिए।
धनु राशि:* सूर्य ग्रहण आपके चौथे स्थान पर लगेगा । जन्मपत्रिका में चौथे स्थान का संबंध माता, भूमि-भवन और वाहन से है । लिहाजा सूर्य का यह ग्रहण माता के साथ आपके रिश्ते पर और भूमि-भवन और वाहन पर लगेगा। लिहाजा किसी काम में आपको माता से सहयोग पाने के लिये थोड़ी अधिक मेहनत करनी पड़ सकती है ।
🪶 उपाय: ग्रहण के अशुभ प्रभावों से बचने के लिये-जरूरतमंद को भोजन कराना चाहिए।
मकर राशि:* आपके तीसरे स्थान में सूर्य ग्रहण होगा। जन्मपत्रिका में तीसरा स्थान भाई-बहनों से संबंध रखता है । लिहाजा इस सूर्यग्रहण के प्रभाव से आपका अपने भाई-बहनों से रिश्ते पर प्रभाव पड़ेगा ।
🪶 उपाय: इस ग्रहण के अशुभ प्रभावों से बचने के लिये आपको धार्मिक कार्यों में अपना सहयोग देना चाहिए ।
कुम्भ राशि:* आपके दूसरे स्थान पर सूर्य ग्रहण लगेगा । जन्मपत्रिका में दूसरे स्थान का सम्बन्ध धन तथा आपके स्वभाव से होता है। अतः यह ग्रहण आपके व्यवहार पर लगेगा। आज किसी से बात करते समय आपको अपनी भाषा का खास ख्याल रखना चाहिए। अपने पैसों को संभाल कर रखना चाहिए।
🪶 उपाय: इस ग्रहण के अशुभ प्रभावों से बचने के लिये आपको नारियल, नारियल का तेल या कुछ बादाम मन्दिर या किसी धर्मस्थल पर दान करना चाहिए।
मीन राशि:* मीन वालों यह सूर्यग्रहण आपके पहले स्थान यानि लग्न स्थान पर लगेगा। जन्मपत्रिका में पहले स्थान स्वयं का स्थान होता है, शरीर का होता है । अतः यह ग्रहण स्वयं आप पर और आपके शरीर पर लगेगा । आज आपके अन्दर ऊर्जा की कमी रहेगी ।
🪶 *उपाय: इस ग्रहण की अशुभ स्थिति से बचने के लिये-आपको सूर्यदेव को जल चढ़ाना चाहिए ।
*🌞 ll~ वैदिक पंचांग ~ll 🌞*
🌤️ दिनांक – 08 अप्रैल 2024
🌤️ दिन – सोमवार
🌤️ विक्रम संवत – 2080
🌤️ शक संवत -1945
🌤️ अयन – उत्तरायण
🌤️ ऋतु – वसंत ॠतु
🌤️ मास – चैत्र
🌤️ पक्ष – कृष्ण
🌤️ तिथि – अमावस्या रात्रि 11:50 तक तत्पश्चात प्रतिपदा
🌤️ नक्षत्र – उत्तरभाद्रपद सुबह 10:12 तक तत्पश्चात रेवती
🌤️ योग – इन्द्र शाम 06:14 तक तत्पश्चात वैधृति
🌤️ राहुकाल – सुबह 07:59 से सुबह 09:33 तक
🌞 सूर्योदय-05:42
🌤️ सूर्यास्त- 06:05
👉 दिशाशूल – पूर्व दिशा में
🚩 व्रत पर्व विवरण – दर्श अमावस्या,चैत्री अमावस्या,सोमवती अमावस्या,(सूर्योदय से रात्रि 11:50 तक),पंचक,खग्रास सूर्यग्रहण (भारत मे नही दिखेगा,इसलिए नियम पालनीय नही है)
💥 विशेष – अमावस्या व व्रत के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)
08 अप्रैल को करे इतना सौभाग्य और समृद्धि होगी⤵️
🌷 नवरात्रि पूजन विधि 🌷
➡ 09 अप्रैल 2024 मंगलवार से नवरात्रि प्रारंभ ।
🙏🏻 नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ भगवती के एक स्वरुप श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। यह क्रम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को प्रातःकाल शुरू होता है। प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए। सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है।
➡ कलश / घट स्थापना विधि
🌷 घट स्थापना शुभ मुहूर्त (सुरत – गुजरात) :
09 अप्रैल 2024 मंगलवार को सुबह 06:25 से 10:35 तक
अभिजित मुहूर्त दोपहर 12:15 से दोपहर 01:05 तक
🙏🏻 देवी पुराण के अनुसार मां भगवती की पूजा-अर्चना करते समय सर्वप्रथम कलश / घट की स्थापना की जाती है। घट स्थापना करना अर्थात नवरात्रि की कालावधि में ब्रह्मांड में कार्यरत शक्ति तत्त्व का घट में आवाहन कर उसे कार्यरत करना । कार्यरत शक्ति तत्त्व के कारण वास्तु में विद्यमान कष्टदायक तरंगें समूल नष्ट हो जाती है। धर्मशास्त्रों के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है। कलश के मुख में विष्णुजी का निवास, कंठ में रुद्र तथा मूल में ब्रह्मा स्थित हैं और कलश के मध्य में दैवीय मातृशक्तियां निवास करती हैं।
🌷 सामग्री:
👉🏻 जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र
👉🏻 जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी
👉🏻 पात्र में बोने के लिए जौ
👉🏻 घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश (“हैमो वा राजतस्ताम्रो मृण्मयो वापि ह्यव्रणः” अर्थात ‘कलश’ सोने, चांदी, तांबे या मिट्टी का छेद रहित और सुदृढ़ उत्तम माना गया है । वह मङ्गलकार्योंमें मङ्गलकारी होता है )
👉🏻 कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल
👉🏻 मौली (Sacred Thread)
👉🏻 इत्र
👉🏻 साबुत सुपारी
👉🏻 दूर्वा
👉🏻 कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के
👉🏻 पंचरत्न
👉🏻 अशोक या आम के 5 पत्ते
👉🏻 कलश ढकने के लिए ढक्कन
👉🏻 ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल
👉🏻 पानी वाला नारियल
👉🏻 नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा
👉🏻 फूल माला
🌷 विधि
🙏🏻 सबसे पहले जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें। इस पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब एक परत जौ की बिछाएं। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब फिर एक परत जौ की बिछाएं। जौ के बीच चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे न दबे। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब कलश के कंठ पर मौली बाँध दें। कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक लिखें। अब कलश में शुद्ध जल, गंगाजल कंठ तक भर दें। कलश में साबुत सुपारी, दूर्वा, फूल डालें। कलश में थोडा सा इत्र डाल दें। कलश में पंचरत्न डालें। कलश में कुछ सिक्के रख दें। कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते रख दें। अब कलश का मुख ढक्कन से बंद कर दें। ढक्कन में चावल भर दें। श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार “पञ्चपल्लवसंयुक्तं वेदमन्त्रैः सुसंस्कृतम्। सुतीर्थजलसम्पूर्णं हेमरत्नैः समन्वितम्॥” अर्थात कलश पंचपल्लवयुक्त, वैदिक मन्त्रों से भली भाँति संस्कृत, उत्तम तीर्थ के जल से पूर्ण और सुवर्ण तथा पंचरत्न मई होना चाहिए।
🙏🏻 नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मौली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रखें। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है: “अधोमुखं शत्रु विवर्धनाय,ऊर्ध्वस्य वस्त्रं बहुरोग वृध्यै। प्राचीमुखं वित विनाशनाय,तस्तमात् शुभं संमुख्यं नारीकेलं”। अर्थात् नारियल का मुख नीचे की तरफ रखने से शत्रु में वृद्धि होती है।नारियल का मुख ऊपर की तरफ रखने से रोग बढ़ते हैं, जबकि पूर्व की तरफ नारियल का मुख रखने से धन का विनाश होता है। इसलिए नारियल की स्थापना सदैव इस प्रकार करनी चाहिए कि उसका मुख साधक की तरफ रहे। ध्यान रहे कि नारियल का मुख उस सिरे पर होता है, जिस तरफ से वह पेड़ की टहनी से जुड़ा होता है।
🙏🏻 अब कलश को उठाकर जौ के पात्र में बीचो बीच रख दें। अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें। “हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इसमें पधारें।” अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें। धूपबत्ती कलश को दिखाएं। कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई अर्पित करें। कलश को इत्र समर्पित करें।
🌷 कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा की चौकी स्थापित की जाती है।
🙏🏻 नवरात्रि के प्रथम दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए। इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। इसको कलश के दायीं ओर रखना चाहिए। उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चाहिए। मूर्ति के अभाव में नवार्णमन्त्र युक्त यन्त्र को स्थापित करें। माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए। माँ दुर्गा से प्रार्थना करें “हे माँ दुर्गा आप नौ दिन के लिए इस चौकी में विराजिये।” उसके बाद सबसे पहले माँ को दीपक दिखाइए। उसके बाद धूप, फूलमाला, इत्र समर्पित करें। फल, मिठाई अर्पित करें।
🙏🏻 नवरात्रि में नौ दिन मां भगवती का व्रत रखने का तथा प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विशेष महत्व है। हर एक मनोकामना पूरी हो जाती है। सभी कष्टों से छुटकारा दिलाता है।
🙏🏻 नवरात्रि के प्रथम दिन ही अखंड ज्योत जलाई जाती है जो नौ दिन तक जलती रहती है। दीपक के नीचे “चावल” रखने से माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा “सप्तधान्य” रखने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है
🙏🏻 माता की पूजा “लाल रंग के कम्बल” के आसन पर बैठकर करना उत्तम माना गया है
🙏🏻 नवरात्रि के प्रतिदिन माता रानी को फूलों का हार चढ़ाना चाहिए। प्रतिदिन घी का दीपक (माता के पूजन हेतु सोने, चाँदी, कांसे के दीपक का उपयोग उत्तम होता है) जलाकर माँ भगवती को मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए। मान भगवती को इत्र/अत्तर विशेष प्रिय है।
🙏🏻 नवरात्रि के प्रतिदिन कंडे की धुनी जलाकर उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कर्पूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा जरूर अर्पित करना चाहिए।
🙏🏻 लक्ष्मी प्राप्ति के लिए नवरात्रि में पान और गुलाब की ७ पंखुरियां रखें तथा मां भगवती को अर्पित कर दें
🙏🏻 मां दुर्गा को प्रतिदिन विशेष भोग लगाया जाता है। किस दिन किस चीज़ का भोग लगाना है ये हम विस्तार में आगे बताएँगे।
🙏🏻 प्रतिदिन कन्याओं का विशेष पूजन किया जाता है। श्रीमद्देवीभागवत पुराण के अनुसार “एकैकां पूजयेत् कन्यामेकवृद्ध्या तथैव च। द्विगुणं त्रिगुणं वापि प्रत्येकं नवकन्तु वा॥” अर्थात नित्य ही एक कुमारी का पूजन करें अथवा प्रतिदिन एक-एक-कुमारी की संख्या के वृद्धिक्रम से पूजन करें अथवा प्रतिदिन दुगुने-तिगुने के वृद्धिक्रम से और या तो प्रत्येक दिन नौ कुमारी कन्याओं का पूजन करें।
🙏🏻 *यदि कोई व्यक्ति नवरात्रि पर्यन्त प्रतिदिन पूजा करने में असमर्थ हैं तो उसे अष्टमी तिथि को विशेष रूप से अवश्य पूजा करनी चाहिए। प्राचीन काल में दक्ष के यज्ञ का विध्वंश करने वाली महाभयानक भगवती भद्रकाली करोङों योगिनियों सहित अष्टमी तिथि को ही प्रकट हुई थीं।