यहां श्री गणेश ने भगवान शिव को दिया था त्रिपारासुर पर विजयश्री का आशीर्वाद

पुणे से 51 किमी दूर रंजनगांव में एक पौराणिक गणपति मंदिर है। हिन्दू धर्म ग्रंथों के मुताबिक इस स्थान पर भगवान गणपति ने अपनी पिता की उपासना से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिया था। इसके बाद भगवान शिव ने राक्षस त्रिपुरासुर पर विजय प्राप्त की थी। तभी यहां भगवान श्री गणेश के मंदिर को स्थापित किया था।
पौराणिक इतिहास
रंजनगांव का वर्णन पुराणों और कई अन्य धर्म ग्रंथों में मिलता है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में गृत्समद नाम के एक महान ऋषि थे, जो बहुत बड़े गणेश भक्त थे। उनका त्रिपुरासुर नाम का एक पुत्र हुआ, जो अत्यंत महत्वाकांक्षी होने के साथ क्रूर भी था। ऋषि गृत्समद ने उसे भगवान गणेश की उपासना करने के लिए कहा। भगवान गणेश ने त्रिपुरासुर को स्वर्ण, चाँदी और लोहे के तीन नगर आशीर्वाद स्वरूप दिए। भगवान गणेश से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद त्रिपुरासुर ने अत्याचार मचा दिया और स्वर्ग, नरक और पाताल को भी जीत लिया।
त्रिपुरासुर के अत्याचार से तंग आकर यहां निवास करने वाले लोग भगवान शिव के पास गए और उनसे रक्षा करने की प्रार्थना की। तब भगवान शिव ने त्रिपुरासुर से युद्ध किया लेकिन भगवान शिव को युद्ध में उस राक्षस पर विजय प्राप्त के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ा। इसी दौरान उन्हें स्मरण हुआ कि त्रिपुरासुर को भगवान श्री गणेश का आशीर्वाद प्राप्त है, तब उन्होंने भी भगवान श्री गणेश का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनकी आराधना की।
भगवान शिव की उपासना से प्रसन्न होकर भगवान श्री गणेश ने उन्हें इसी स्थान पर दर्शन दिए और विजयश्री का आशीर्वाद दिया। भगवान गणेश के आशीर्वाद से महादेव ने एक ही बाण से त्रिपुरासुर के तीनों नगरों को नष्ट कर दिया और उस पर विजय प्राप्त की।
मंदिर की विशेष संरचना
यह मंदिर भगवान गणेश को समर्पित ‘अष्टविनायकों’ में चौथा मंदिर है। वर्तमान दृश्य मंदिर का निर्माण 9वीं-10वीं शताब्दी के दौरान हुआ था। मंदिर पूर्वाभिमुख है और इसके मुख्य द्वार पर दोनों ओर विशाल द्वारपाल बनाए गए हैं।
मंदिर की संरचना ऐसी है कि सूर्य के दक्षिणायन और उत्तरायण होने पर सूर्य की किरणें सीधे ही भगवान गणेश की स्वयंभू प्रतिमा पर पड़ती हैं। मंदिर के गर्भगृह में भगवान गणेश, ‘महागणपति’ के रूप में विराजमान है। उनकी इस अद्भुत प्रतिमा का ललाट काफी चौड़ा है और सूँड़ दक्षिण दिशा की ओर मुड़ी हुई है। उनके दोनों ओर ऋद्धि और सिद्धि विराजमान हैं।
मंदिर के वर्तमान गर्भगृह का निर्माण सन् 1790 में माधवराव पेशवा और मंदिर के मुख्य हॉल का निर्माण इंदौर के सरदार किबे ने कराया था।

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