गो-भक्ति, करुणा और प्रकृति प्रेम का पर्व गोपाष्टमी: संजय सर्राफ
रांची:विश्व हिंदू परिषद सेवा विभाग एवं राष्ट्रीय सनातन एकता मंच के प्रांतीय प्रवक्ता संजय सर्राफ ने कहा है कि इस वर्ष 9 नवंबर को गोपाष्टमी का पवित्र पर्व श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाएगा। गोपाष्टमी हिंदू धर्म में एक विशेष स्थान रखता है, क्योंकि यह पर्व न केवल गोसेवा और श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का स्मरण कराता है, बल्कि गोवंश के प्रति हमारी आस्था और करुणा का प्रतीक भी है। मान्यता है कि इसी दिन माता यशोदा ने बालकृष्ण को पहली बार गायों की देखभाल और चराने की जिम्मेदारी सौंपी थी। तब से लेकर आज तक गोपाष्टमी का यह पर्व गोभक्ति, समर्पण और गो संरक्षण का सन्देश देता आ रहा है। गोपाष्टमी के अवसर पर भक्तजन प्रातःकाल उठकर पवित्र नदियों और तालाबों में स्नान कर विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। गायों को स्नान कराकर सुंदर वस्त्रों और रंग-बिरंगे फूलों से सजाया जाता है। मथुरा, वृंदावन और ब्रजभूमि में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन होता है, जिसमें श्रद्धालु गायों की आरती करते हैं, उन्हें विशेष आहार चढ़ाते हैं और परिवार संग गोसेवा में लीन होते हैं। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक इस पावन दिन का इंतजार करते हैं, ताकि वे अपने ईष्टदेव श्रीकृष्ण को प्रसन्न कर सकें और गौमाता का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। गोपाष्टमी केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह हमें प्रकृति, जीव-जंतुओं और पर्यावरण के संरक्षण का संदेश भी देता है। हिंदू धर्म में गाय को माता का दर्जा प्राप्त है, जो धरती पर जीवन को समृद्धि प्रदान करती है। गोपाष्टमी का पर्व हमें गौमाता के संरक्षण और संवर्धन का संकल्प लेने की प्रेरणा देता है, जो हमारे समाज और पर्यावरण के लिए अत्यंत आवश्यक है।
इस गोपाष्टमी पर हम सभी मिलकर गोसेवा का संकल्प लें, जिससे हमारे समाज में गोवंश के प्रति आदर और प्रेम बढ़े। गोपाष्टमी का यह पर्व हमें आत्मिक शांति और सद्भाव की अनुभूति कराता है और समाज में करुणा, भक्ति और प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने का संदेश देता है।