ज्योतिषाचार्य पंडित जयनंदन पांडेय ने बताया कि मकर संक्रांति:—–
14.01.2025 माघ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा मंगलवार को 3:26 दिन में पड़ रहा है इसलिए मकर संक्रांति का पुण्य काल 14 जनवरी को ही मनाया जाएगा। बताते चलें की मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है इसके पीछे कारण क्या है।
ज्योतिषाचार्य जयनंदन पांडेय ने बताया कि जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है उस अवधि को सौर वर्ष कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों ओर घूमना क्रांति चक्र कहलाता है। इस परिधि को 12 भागों में बांटकर 12 राशियां बनी है। इन राशियों का नामकरण 12 नक्षत्रों के अनुरूप हुआ है। पृथ्वी का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश को संक्रांति कहलाता है। पृथ्वी के मकर राशि में प्रवेश करने को मकर संक्रांति कहते हैं।
सूर्य का मकर रेखा से उतरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण तथा कर्क रेखा से दक्षिण की ओर जाना मकर रेखा की ओर जाना दक्षिणायन कहते हैं।
उत्तरायण में दिन बड़े हो जाते हैं प्रकाश भी बढ़ जाता है रातें दिन की अपेक्षा छोटी होने लगती है ।दक्षिणायन में इसके ठीक विपरीत होता है। शास्त्रों के अनुसार ज्योतिषाचार्य जयनंदन पांडेय ने बताया कि उत्तरायण की अवधि देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात्रि है।
वैदिक काल में उत्तरायण को देवताओं तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता है।
मकर संक्रांति के दिन यज्ञ में दिए हुए द्रव को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं। इसी मार्ग से पुण्य आत्माएं शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोगों में प्रवेश करती है।
इसलिए यह आलोक का अवश्य प्राप्त माना गया है। सूर्य के एक राशि से दूसरी राशि में जाने को ही संक्रांति कहते हैं।
एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति के बीच का समय ही सौर मास है।
वैसे तो सूर्य संक्रांति 12 हैं, लेकिन पौष मास में जब सूर्य धनु राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करता है, तभी हिन्दू मकर संक्रांति मनाते है।
ज्योतिषाचार्य जयनंदन पांडेय ने बताया कि
14 जनवरी ऐसा दिन है, जब धरती पर अच्छे दिन की शुरुआत होती है।
जब तक सूर्य पूर्व से दक्षिण की ओर गमन करता है । तब तक उसकी किरणों का असर अशुभ माना गया है।लेकिन जब वह पूर्व से उत्तर की ओर गमन करते लगता है। तब उसकी किरणें सेहत और शांति को बढ़ाती हैं।शास्त्रों में दक्षिणायन को देवताओं के शयन का समय माना गया है। साथ ही उत्तरायण को देवताओं को जागृति का समय माना गया है।
मकर संक्रांति में सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में जाता है, सूर्य के उत्तरायण काल में ही शुभ कार्य किए जाते हैं।
ज्योतिषाचार्य जयनंदन पांडेय के अनुसार
सूर्य जब मकर, कुंभ, वृष, मीन, मेष और मिथुन राशि में रहता है तब इसे उत्तरायण कहते हैं। वहीं, जब सूर्य बाकी राशियों सिंह, कन्या, कर्क, तुला, वृच्छिक और धनु राशि में रहता है, तब इसे दक्षिणायन कहते हैं।
श्रीकृष्ण ने कहा था-
भगवान श्रीकृष्ण ने भी उत्तरायण का महत्व बताते हुए गीता में कहा है कि उत्तरायण के छह मास के शुभ काल में, जब सूर्य देव उत्तरायण होते हैं और पृथ्वी प्रकाशमय रहती है। तो इस प्रकाश में शरीर का परित्याग करने से व्यक्ति का पुनर्जन्म नहीं होता, ऐसे लोग को स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
ज्योतिषाचार्य जयनंदन पांडेय ने बताया कि
मकर संक्रांति पर तिल का भी काफी महत्व
है। इसलिए आज के दिन स्नान करके तिल खाना चाहिए।
पौराणिक कहानी--
एक पौराणिक कथा के अनुसार शनि देव को उनके पिता सूर्य देव पसंद नहीं करते थे। इसी कारण सूर्य देव ने शनि देव और उनकी मां छाया को अपने से अलग कर दिया। इस बात से क्रोध में आकर शनि और उनकी मां ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का श्राप दे दिया।
पिता को कुष्ठ रोग में पीड़ित देख यमराज (जो कि सूर्य भगवान की दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र हैं) ने तपस्या की। यमराज की तपस्या से सूर्यदेव कुष्ठ रोग से मुक्त हो गए। लेकिन सूर्य देव ने क्रोध में आकर शनि देव और उनकी माता के घर ‘कुंभ’ (शनि देव की राशि) को जला दिया। इससे दोनों को बहुत कष्ट हुआ।
यमराज ने अपनी सौतेली माता और भाई शनि को कष्ट में देख उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य को समझाया। यमराज की बात मान सूर्य देव शनि से मिलने उनके घर पहुंचे। कुंभ में आग लगाने के बाद वहां सब कुछ जल गया था, सिवाय काले तिल के अलावा। इसीलिए शनि देव ने अपने पिता सूर्य देव की पूजा काले तिल से की। इसके बाद पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि को आशीर्वाद दिया। सूर्य देव ने शनि को उनका दूसरा घर ‘मकर’ दिया।शनि की तिल के कारण ही शनि को उनका वैभव फिर से प्राप्त हुआ था। इसलिए शनि देव को तिल प्रिय है। इसी समय से मकर संक्राति पर तिल से सूर्य एवं शनि की पूजा का नियम शुरू हुआ।
मान्यता है कि शनि देव को तिल की वजह से ही उनके पिता, घर और सुख की प्राप्ति हुई, तभी से मकर संक्रांति पर सूर्य देव की पूजा के साथ तिल का बड़ा महत्व माना जाता है।
मकर संक्रांति पर दान और स्नान का विशेष महत्व:—-
ज्योतिषाचार्य जयनंदन पांडेय ने बताया कि शास्त्रों में मकर संक्रांति के दिन स्नान, ध्यान और दान का विशेष महत्व बताया गया है। पुराणों में मकर संक्रांति को देवताओं का दिन बताया गया है। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर वापस लौटता है।
मान्यता है कि इस अवसर पर दिया गया दान 100 गुना बढ़कर पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कंबल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है।
ज्योतिषाचार्य जयनंदन पांडेय ने बताया कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रांति का ही चयन किया था।
जयनंदन पांडेय जी के कथनानुसार
मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं। और सगर के साठ हजार पुत्रों का उद्धार हुआ था। मकर संक्रांति के दिन गंगासागर में स्नान का विशेष महत्व है। एवं कुंभ स्नान का भी विशेष महत्व है।
नोट:–
12 वर्ष के बाद प्रयागराज में इस वर्ष 2025 में महाकुंभ का स्नान का आयोजन किया गया है। प्रयागराज में 45 दिन तक चलने वाला महाकुंभ का मेला किसी भी दिन जाकर के प्रयागराज में स्नान करें और पुण्य के भागी बने।
जिनको कुंभ स्नान करने के लिए प्रयागराज जाना है वह मेरे नंबर पर संपर्क करें।
ज्योतिषाचार्य
पंडित जयनंदन पांडेय
ग्राम पोस्ट पदमा जिला हजारीबाग
विशेष जानकारी के लिए संपर्क सूत्र:—-
6203512145,
9430125427