शिक्षण संस्थानों में प्रार्थना की तरह संविधान प्रस्तावना का हो पाठ, शिवानंद का नीतीश को पत्र
पटना : राजद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्यसभा के पूर्व सदस्य शिवानंद तिवारी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिख कर कहा है कि आज संविधान और लोकतंत्र पर जो ख़तरा दिखाई दे रहा है, वह ज़्यादा वास्तविक और बहुआयामी है। इसका मुकाबला करने के लिए सभी शिक्षण संस्थानों में प्रार्थना की तरह संविधान की प्रस्तावना का पाठ शुरू किया जाये। प्रदेश के सभी शिक्षण संस्थानों में, चाहे वे सरकारी हों या ग़ैरसरकारी रोज़ाना संविधान की प्रस्तावना का पाठ कराने का नियम बनाया जाना चाहिए। सरकारी सेवकों तथा जन प्रतिनिधियों के लिए भी इसके नियमित और सार्वजनिक पाठ का कोई नियम बनना चाहिए।
पत्र का मजमून इस प्रकार है-
माननीय मुख्यमंत्री जी,
आप स्वयं महसूस कर रहे होंगे कि हमारे संविधान और लोकतंत्र पर आज गंभीर ख़तरा है। इसके पहले आपातकाल के रूप में हमलोगों ने संविधान और लोकतंत्र पर ख़तरे को झेला है, लेकिन उस अंधेरे दौर को पार कर देश ने लोकतंत्र को पुनः स्थापित किया था।
लेकिन संविधान पर आज फिर से जो ख़तरा दिखाई दे रहा है, वह पहले के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा गंभीर और चिंताजनक है। इंदिरा जी के दौर में लगे आपातकाल को एक भटकाव कहा जा सकता है। कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में आज़ादी की लड़ाई लड़ी गई थी। संविधान का निर्माण भी कांग्रेस के नेतृत्व में हुआ था। जवाहर-लाल नेहरू ने ही संविधान सभा में संविधान के उद्देश्यों की घोषणा की थी। इसलिए कहा जा सकता है कि इंदिरा जी के समय जो आपातकाल लगा, वह एक भटकाव था। लेकिन आज संविधान और लोकतंत्र पर जो ख़तरा दिखाई दे रहा है वह ज़्यादा वास्तविक और बहुआयामी है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में देश में जो सरकार है, उसका यक़ीन भारतीय संविधान में नहीं है। वह लोकतंत्र में भी यक़ीन नहीं करती। उसके विचार इस मामले में प्रारंभ से ही बिल्कुल स्पष्ट और घोषित हैं।
देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की संविधान विरोधी घोषणा इनके द्वारा रोज़ाना हो रही है। यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि हिंदू समाज की संरचना ही संविधान विरोधी है। हमारा संविधान सबको बराबरी और समान अवसर देने की गारंटी देता है, जबकि हिंदू समाज में व्यक्ति का स्थान जन्मना निर्धारित होता है। हिंदू समाज का एक छोटा हिस्सा जन्मना श्रेष्ठ माना जाता है। ज्ञान, विद्या, धन, संपत्ति राज-काज आदि उन्हीं के लिए आरक्षित हैं। जबकि शेष के ज़िम्मे श्रेष्ठों की सेवा और चाकरी को धार्मिक कर्तव्य माना गया है। लगभग एक चौथाई आबादी तो अछूतों की श्रेणी में डाल दी गई है। आदिवासी समाज को तो पूर्ण मनुष्य का दर्जा भी प्राप्त नहीं हुआ है। महिलाओं के लिए भी हिंदू समाज व्यवस्था में दोयम दर्जा निर्धारित है।
आज के दिन भी, जबकि हमारा संविधान सबको बराबरी का अधिकार दे रहा है। आये दिन वंचित समाज के साथ होने वाले अमानुषिक व्यवहार की ख़बर हम रोज़ाना सुनते और पढ़ते हैं।
इस आलोक में संविधान की रक्षा हमारा आपद धर्म है। देश में अगर संविधान और लोकतंत्र नहीं रहेगा तो वंचित समाज की स्थिति ग़ुलामों से भी ज़्यादा बदतर हो जाएगी।
लेकिन दुर्भाग्य है कि जिनको संविधान और लोकतंत्र की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है, वो भी संविधान की महत्ता से अनभिज्ञ हैं। आज़ादी के बाद से ही सभी शिक्षण संस्थानों में प्रार्थना की तरह संविधान की प्रस्तावना से प्रत्येक कक्षा की शुरुआत होनी चाहिए थी। सरकारी सेवकों के लिए भी अपना पद धारण के पूर्व संविधान की प्रस्तावना और उसके प्रति निष्ठा के संकल्प के साथ कुर्सी पर बैठने का प्रावधान होना चाहिए था।
उपरोक्त संदर्भ में मेरा आपसे विनम्र अनुरोध है कि प्रदेश के सभी शिक्षण संस्थानों में, चाहे वे सरकारी हों या ग़ैरसरकारी, रोज़ाना संविधान की प्रस्तावना का पाठ कराने का नियम बनाया जाना चाहिए। सरकारी सेवकों तथा जन प्रतिनिधियों के लिए भी इसके नियमित और सार्वजनिक पाठ का कोई नियम बनना चाहिए। इस प्रकार संविधान के पक्ष में समाज में और ज़्यादा सबल वातावरण बनाने की शुरुआत की जा सकती है। उम्मीद करता हूँ कि एक पुराने साथी के इन सुझावों पर आप गंभीरता पूर्वक विचार करेंगे।
आपका-शिवानन्द 10 जून 23.
नोट-मुख्यमंत्री जी को भेजे गए उपरोक्त पत्र की प्रति तेजस्वी यादव, उप मुख्यमंत्री बिहार, लालू प्रसाद, राष्ट्रीय अध्यक्ष, राजद के अतिरिक्त महा गठबंधन में शामिल सभी दलों के नेताओं को भी भेजा है।